Thursday, October 11, 2018

Buddhism & Jainism - बुद्ध एवं जैन धर्म के महत्वपूर्ण तथ्य - UPSC/BPSC/SSC/RAILWAY etc. - Study Arena



बौद्ध एवं जैन धर्म समान परंपरा की दो प्रमुख शाखाएं हैं जो आज भी अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। बौद्ध एवं जैन धर्म की उत्‍पत्ति समाज में व्‍याप्‍त घोर निराशावाद के समय में हुई और दोनों धर्म में कुछ बिन्‍दु समान है। बौद्ध एवं जैन धर्म के सबसे अधिक अनुयायी व्‍यापारिक वर्ग से आते हैं। महावीर और बुद्ध ने लोगों को अपना संदेश सामान्‍य जनमानस की भाषा में प्रसारित किया।

बौद्ध धर्म और जैन धर्म

 1) उत्‍पत्‍ति के कारण
  • ब्राह्मण नामक पुरोहि‍त वर्ग के प्रभुत्‍व के विरुद्ध क्षत्रियों की प्रतिक्रिया। महावीर और गौतम बुद्ध, दोनों क्षत्रिय कुल के थे।
  • वैदिक बलिदानों और खाद्य पदार्थों के लिए मवेशियों की अंधाधुंध हत्याओं ने नईं कृषि अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर दिया, जो खेती करने के लिए मवेशियों पर निर्भर थी। बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म दोनों इस हत्या के विरुद्ध खड़े हो गए थे।
  • पंच चिन्‍हित सिक्‍कों के प्रचलन और व्‍यापार एवं वाणिज्‍य में वृद्धि के साथ शहरों के विकास ने वैश्‍यों के महत्‍व को बढ़ावा दिया, जो अपनी स्‍थिति में सुधार करने के लिए एक नए धर्म की तलाश में थे। जैन धर्म एवं बैद्ध धर्म ने उनकी जरूरतों को सुलझानें में सहायता की।
  • नए प्रकार की संपत्‍ति से सामाजिक असमानताएं पैदा हो गईं और आम लोग अपने जीवन के प्रारंभिक स्‍वरूप में जाना चाहते थे।
  • वैदिक धर्म की जटिलता और अध: पतन में वृद्धि हुई।
2) जैन धर्म और बौद्ध धर्म और वैदिक धर्म के बीच अंतर
  • वे मौजूदा वर्ण व्‍यवस्‍था को कोई महत्‍व नहीं देते थे।
  • उन्‍होंने अहिंसा के सुसमाचार का प्रचार किया।
  • उन्‍होंने ब्राह्मण द्वारा निंदित धन उधारदाताओं सहित वैश्‍यों को शामिल किया।
  • वे साधारण, नैतिकतावादी और तपस्‍वी जीवन को पसंद करते थे।

बौद्ध धर्म

1)गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म
गौतम बुद्ध का जन्‍म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्‍तु के निकट लुम्‍बिनी नामक स्‍थान पर शाक्‍य वंश के राजा के यहां हुआ था। इनकी माता कौशल वंश की राजकुमारी थीं। 29 वर्ष की आयु में बुद्ध के जीवन के चार दृश्‍य उन्‍हें त्‍याग के मार्ग पर ले गए। वे दृश्‍य निम्‍नानुसार थे-
  • एक बूढ़ा आदमी
  • एक बीमार व्‍यक्‍ति
  • एक सन्‍यासी
  • एक मृत व्‍यक्‍ति
बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएं
घटनास्‍थानप्रतीक
जन्‍मलुम्‍बनीकमल और सांड
महाभिनिष्‍क्रमणघोड़ा
निर्वाणबोध गयाबोधि वृक्ष
धर्मचक्र प्रवर्तनसारनाथचक्र
महापरिनिर्वाणकुशीनगरस्‍तूप

2) बौद्ध धर्म के सिद्धांत
a. चार आर्य सत्‍य
  1. दुख- जीवन दुखों से भरा है।
  2. समुदाय - ये दुखों का कारण होते हैं।
  3. निरोध- ये रोके जा सकते हैं।
  4. निरोध गामिनी प्रतिपद्या- दुखों की समाप्‍ति का मार्ग
b. अष्‍टांगिक मार्ग
  1. सम्‍यक दृष्‍टि
  2. सम्‍यक संकल्‍प
  3. सम्‍यक वाणी
  4. सम्‍यक कर्मान्‍त
  5. सम्‍यक आजीव
  6. सम्‍यक व्‍यायाम
  7. सम्‍यक स्‍मृ‍ति
  8. सम्‍यक समाधि
c. मध्‍य मार्ग- विलासिता और मितव्‍ययिता दोनों का त्‍याग करना
d. त्रिरत्‍न- बुद्ध, धर्म और संघ
3) बौद्ध धर्म की मुख्‍य विशेषताएं और इसके प्रसार के कारण
  1. बौद्ध धर्म को ईश्‍वर और आत्‍मा पर विश्‍वास नहीं था।
  2. महिला की संघ में प्रविष्‍टि स्‍वीकार्य थी। जाति और लिंग से पृथक संघ सभी के लिए खुला था।
  3. पाली भाषा का प्रयोग किया गया, जो आम लोगों के बीच बौद्ध सिद्धांतों के प्रसार में मददगार सिद्ध हुई।
  4. अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और इसे मध्‍य एशिया, पश्‍चिम एशिया और श्रीलंका में फैलाया।
  5. बौद्ध सभाएं
  • प्रथम परिषद: प्रथम परिषद वर्ष 483 ईसा पूर्व में राजा अजातशत्रु के संरक्षण में बिहार में राजगढ़ के पास सप्‍तपर्णी गुफाओं में आयोजित की गई, प्रथम परिषद  के दौरान उपाली द्वारा दो बौद्ध साहित्‍य विनय और सुत्‍ता पिताका संकलित किए गये।
  • द्वितीय परिषद: द्वितीय परिषद वर्ष 383 ईसा पूर्व में राजा कालाशोक के संरक्षण में वैशाली में आयोजित की गई थी।
  • तृतीय परिषद: तृतीय परिषद वर्ष 250 ईसा पूर्व में राजा अशोक महान के संरक्षण में पाटलिपुत्र में आयोजित की गई थी, तृतीय परिषद के दौरान अभिधम्‍म पिताका को जोड़ा गया और बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथ त्रिपिटक को संकलित किया गया।
  • चतुर्थ परिषद: चतुर्थ परिषद वर्ष 78 ईस्‍वीं में राजा कनिष्‍क के संरक्षण में कश्‍मीर के कुण्‍डलवन में आयोजित की गई थी, चतुर्थ परिषद के दौरान हीनयान और महायान को विभाजित किया गया था।
4) बौद्ध धर्म के पतन के कारण
  1. बौद्ध धर्म उन धार्मिक क्रियाओं और समारोहों के अधीन हो गया, जिनकी उन्‍होंने मूल रूप से निंदा की थी।
  2. उन्‍होंने पाली छोड़कर संस्‍कृत को अपना लिया। उन्‍होंने मूर्ति पूजा शुरू कर दी और भक्‍तों से कईं समान प्राप्‍त किए।
  3. मठ आसानी से प्‍यार करने वालों के वर्चस्‍व के अधीन हो गए और भ्रष्‍ट प्रथाओं के केंद्र बन गए।
  4. वज्रायन प्रथा का विकास होने लगा।
  5. बौद्ध महिलाओं को वासना की वस्‍तु के रूप में देखने लगे।
5) बौद्ध धर्म का महत्‍व और प्रभाव
a. साहित्‍य
  1.  त्रिपिटक
    सुत्‍त पिताका- बुद्ध के वचन
    विनय पिताका- मठ के कोड
    अभिधम्‍म पिताका- बुद्ध के धार्मिक प्रवचन
  2. मिलिंदपान्‍हों- मींदर और संत नागसेना के बीच के संवाद
  3. दीपावाम्‍श (Dipavamsha) और महावाम्‍श (Mahavamsha) – श्रीलंका का महान इतिहास
  4. अश्‍वघोष के द्वारा बौद्धचरित्र

b. संप्रदाय
  1. हीनयान (Lesser Wheel)- ये निर्वाण प्राप्‍ति की गौतम बुद्ध की वास्‍तविक शिक्षाओं में विश्‍वास करते हैं। वे मूर्ति पूजा में विश्‍वास नहीं करते और हीनयान पाठ में पाली भाषा का प्रयोग करते थे।
  2. महायान (Greater Wheel)- इनका मानना है कि निर्वाण गौतम बुद्ध की कृपा और बोधिसत्‍व से प्राप्‍त किया जा सकता है न कि उनकी शिक्षा का पालन करके। ये मूर्ति पूजा पर विश्‍वास करते थे और महायान पाठ में संस्‍कृत भाषा का प्रयोग करते थे।
  3. वज्रायन- इनका मानना है कि निर्वाण जादू और काले जादू की सहायता से प्राप्‍त किया जा सकता है।
c. बोधिसत्‍व
  1. वज्रपाणि
  2. अवलोकितेश्‍वरा या पद्मपाणि
  3. मंजूश्री
  4. मैत्रीय
  5. किश्‍तिग्रह
  6. अमिताभ/अमित्‍युषा
d. बौद्ध धर्म की वास्‍तु कला
  • पूजा का स्‍थल- बुद्ध या बोधिसत्‍व के अवशेषों वाले स्‍तूप। चैत्‍य, प्रार्थना कक्ष जबकि विहार, भिक्षुओं के निवास स्‍थान थे।
  • गुफा वास्‍तुकला का विकास- जैसे गया में बराबर गुफाएं
  • मूर्ति पूजा और मूर्तियों का विकास
  • उत्‍कृष्‍ट विश्‍वविद्यालयों का निर्माण जिसने पूरे विश्‍व के छात्रों को आ‍कर्षित किया।


जैन धर्म

जैन धर्म 24 तीर्थंकरों में विश्‍वास करता है जिसमें ऋषभदेव सबसे पहले और महावीर, बुद्ध के समकालीन 24वें तीर्थंकर हैं। 23वें तीर्थंकर पार्श्‍वनाथ (प्रतीक: नाग) बनारस के राजा अश्‍वसेन के पुत्र थे। 24वें और अंतिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर (प्रतीक: शेर) थे। उनका जन्म कुंडग्राम (बिहार जिला वैशाली) में 540 ईसा पूर्व में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ ‘ज्ञातृक कुल’ के मुखिया थे। उनकी मां त्रिशला, वैशाली के लि‍च्छवी के राजा चेतक की बहन थीं। महावीर, बिंबिसार से संबंधित थे। यशोदा से विवाह के बाद बेटी प्रियदर्शनी का जन्‍म हुआ, जिनके पति जमाली उनके पहले शिष्य बने। 30 वर्ष की उम्र में, अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, वह सन्‍यासी बन गए। अपने सन्‍यास के 13वें वर्ष (वैशाख के 10वें वर्ष) में, जृम्‍भिक ग्राम के बाहर, उन्हें सर्वोच्च ज्ञान (कैवल्‍य) की प्राप्‍ति हुई। तब से उन्‍हें जैन या जितेंद्रिय और महावीर और उनके अनुयायियों को जैन नाम दिया गया था। उन्हें अरिहंत की उपाधि प्राप्‍त हुई, अर्थात्, योग्यता। 72 वर्ष की आयु में, 527 ईसा पूर्व में, पटना के पास पावा (पावपूरी) में उनकी मृत्यु हो गई।

जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञाएं

  • अहिंसा- हिंसा न करना
  • सत्‍य- झूठ न बोलना
  • अस्‍तेय- चोरी न करना
  • अपरिग्रह- संपत्‍ति का अधिग्रहण न करना
  • ब्रह्मचर्य- अविवाहित जीवन
तीन मुख्‍य सिद्धांत
  • अहिंसा
  • अनेकांतवाद
  • अपरिग्रह
जैन धर्म के त्रिरत्‍न
  • सम्‍यक दर्शन- सम्‍यक श्रद्धा
  • सम्‍यक ज्ञान- सम्‍यक जन
  • सम्‍यक आचरण – सम्‍यक कर्म
ज्ञान के पांच प्रकार
  • मति जन
  • श्रुत जन
  • अवधि जन
  • मनाहप्रयाय जन
  • केवल जन
जैन सभाएं
  • प्रथम सभा 300 ईसा पूर्व चंद्रगुप्‍त मौर्य के संरक्षण में पाटलिपुत्र में हुई जिसके दौरान 12 अंग संकलित किए गए।
  • द्वितीय सभा 512 ईसा में वल्‍लभी में हुई जिसके दौरान 12 अंग और 12 उपअंग का अंतिम संकलन किया गया।
संप्रदाय
  • श्‍वेतांबर- स्‍थूलभद्र- जो लोग सफेद वस्‍त्र धारण करते थे। जो लोग अकाल के दौरान उत्‍तर में रहे थे।
  • दिगंबर- भद्रबाहु- मगध अकाल के दौरान डेक्‍कन और दक्षिण में भिक्षुओं का पलायन। ये नग्‍न रहते थे।
जैन साहित्‍य
जैन साहित्‍यकार प्रकृत का प्रयोग करते थे, जो संस्कृत के प्रयोग की तुलना में लोगों की एक आम भाषा है। इस प्रकार से जैन धर्म लोगों के माध्यम से दूर तक गया। महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य इस प्रकार हैं-
  • 12 अंग
  • 12 उपअंग
  • 10 परिक्रण
  • 6 छेदसूत्र
  • 4 मूलसूत्र
  • 2 सूत्र ग्रंथ
  • संगम साहित्‍य का भाग भी जैन विद्वानों की देन है।

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